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उ॒दाव॑ता॒ त्वक्ष॑सा॒ पन्य॑सा च वृत्र॒हत्या॑य॒ रथ॑मिन्द्र तिष्ठ। धि॒ष्व वज्रं॒ हस्त॒ आ द॑क्षिण॒त्राभि प्र म॑न्द पुरुदत्र मा॒याः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

udāvatā tvakṣasā panyasā ca vṛtrahatyāya ratham indra tiṣṭha | dhiṣva vajraṁ hasta ā dakṣiṇatrābhi pra manda purudatra māyāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त्ऽअव॑ता। त्वक्ष॑सा। पन्य॑सा। च॒। वृ॒त्र॒ऽहत्या॑य। रथ॑म्। इ॒न्द्र॒। ति॒ष्ठ॒। धि॒ष्व। वज्र॑म्। हस्ते॑। आ। द॒क्षि॒ण॒ऽत्रा। अ॒भि। प्र। म॒न्द॒। पु॒रु॒ऽद॒त्र॒। मा॒याः ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:18» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजजन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पुरुदत्र) बहुत दान करनेवाले (इन्द्र) राजन् ! आप (उदावता) ऊर्ध्वगमन और (पन्यसा) शुद्ध व्यवहार तथा (त्वक्षसा) सूक्ष्मीकरण से (वृत्रहत्याय) संग्राम के लिये (रथम्) रथ पर (आ) सब प्रकार से (तिष्ठ) स्थित हो और (दक्षिणत्रा) दाहिने (हस्ते) हाथ में (वज्रम्) शस्त्र और अस्त्र को (धिष्व) धारण करिये (मायाः) बुद्धियों को (च) और प्राप्त होकर (अभि, प्र, मन्द) सब प्रकार से प्रशंसा करिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो उत्कृष्टता से सम्पूर्ण विषयों को जाननेवाली बुद्धियों को प्राप्त होकर शस्त्र और अस्त्रों को धारण करके युद्ध के लिये जाते हैं, वे विजय को प्राप्त होते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजजनाः किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे पुरुदत्रेन्द्र ! त्वमुदावता पन्यसा त्वक्षसा वृत्रहत्याय रथमाऽऽतिष्ठ दक्षिणत्रा हस्ते वज्रं धिष्व। मायाश्च प्राप्याभि प्र मन्द ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उदावता) ऊर्ध्वगमनेन (त्वक्षसा) सूक्ष्मीकरणेन (पन्यसा) शुद्धेन व्यवहारेण (च) (वृत्रहत्याय) संग्रामाय (रथम्) (इन्द्र) राजन् (तिष्ठ) (धिष्व) धरस्व (वज्रम्) शस्त्रास्त्रम् (हस्ते) (आ) समन्तात् (दक्षिणत्रा) दक्षिणे (अभि) (प्र) (मन्द) प्रशंसय (पुरुदत्र) बहुदानकृत् (मायाः) प्रज्ञाः ॥९॥
भावार्थभाषाः - य उत्कृष्टतया सकलविषयाः प्रज्ञाः प्राप्य शस्त्राऽस्त्राणि धृत्वा युद्धाय गच्छन्ति ते विजयं प्राप्नुवन्ति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे उत्कृष्टतेने सर्व विषय जाणणारी प्रज्ञा प्राप्त करून शस्त्र, अस्त्र धारण करून युद्ध करतात ते विजय प्राप्त करतात. ॥ ९ ॥